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Saturday, May 15, 2010

ममता

मेरा छोटा बच्चा
मेरा बेटा
उत्साहित है
अपने बड़े होने के
अहसास को जी पाने के लिए

बार-
बार
जानना चाहता था
कब बाहर जाओगी माँ
मैं इस बार अकेले
बिलकुल अकेले
खुद को /घर को संभालूँगा

मैं हाँ-हाँ करती
ट्रेन में बैठ तो गयी हूं

पर
मन जा अटका है
उसी की ओर

कैसे रहेगा वह
क्या खायेगा

कहीं रात लाइट चली गयी तो?
घर
का इनवर्टर भी ख़राब है
वह डरता है

दिन में भी अंधेरे से।









Tuesday, May 11, 2010

अनुभूति

वर्ष के सबसे कठिन दिन ही नहीं
बल्कि वर्षों के वर्ष
बिताये हैं कठिनाई में
कभी जीती/मरती
कभी हंसती/रोती
तब जो तसल्ली देता था
वह था अपनों का
अपना होने का भ्रम

आज वर्ष हैं/दिन हैं
दिनों की कठिनाइयाँ भी हैं
पर नहीं है पीड़ा
नहीं है घुटन
क्योंकि पता है
कोई धोखा दे सके
ऐसा सच नहीं
है अपने साथ।

Saturday, May 8, 2010

पीड़ा

पीड़ित हूँ
मैं माँ हूँ
उन बच्चों की
जिनको दिया
प्यार अपार
दुलार/सुरक्षित ये संसार
सुखी हैं वे
जैसे भी जिस हाल में
क्योंकि कैद नहीं हैं
वे पिंजरे के जाल में
सांस ले पाते हैं
खुली चिरैया की तरह
सुखी हूँ मैं

ये सुख पीड़ा बढ़ाता है
मुझे मुरझाई अपनी
वो नन्ही कली
जिसको मैं अपनी
प्यार/दुलार के छाँव में
न रख सकी
न सींच सकी
जो आज भी
मरू की तपिश को सहती
प्रयासरत है
अपनी कोमलता
को बचाए रखने के लिए
जिसको मुझसे माली का
मुखौटा पहन छीन लिया
सौदागरों ने।

विडम्बना

चढ़ती ज़िन्दगी/छोटी-छोटी फ्रौकें /छोटे-छोटे बाल
पतली -पतली टांगें /कोमल चेहरा
सुख का /प्यार का /अपनेपन का आत्मविश्वास

शनैः शनैः ............
सलवार -कमीजों /पैंट -टॉप बदलता
स्कूल -कॉलेज /दुनिया को जीतने का जज्बा
पर वही विश्वास

फिर

अचानक डोली /कहार
घूंघट /रसोई /ससुराल
सास -ससुर /देवर -ननदें
और भी जाने क्या -क्या बातें
हँसना है मना जहाँ /सिर झुका सुनना / अमल करना
अंतिम सत्य है जीवन का।

Sunday, March 28, 2010

कौन हूँ मैं?

कौन हूँ मैं
युवती/बूढी
या कुछ और
मुझे याद नहीं
मेरी अवस्था का मुझे
भान नहीं/पर
जन्मी तो कुछ वर्षों ही पूर्व
तो बच्ची हूँ /शायद
समय यदि निर्धारित करता है
तो बहुत पुरानी हूँ
आदिकाल से।
पर अभी जिस्म में मेरे
नहीं पड़ी झुर्रियां
नहीं गली हड्डियाँ
क्योंकि मैं
औरत हूँ।

Friday, March 19, 2010

महसूस कर रही हूँ

महसूस कर रही हूँ
हवा में तैरते हुए
जहाज में खुद को
लगता है
यह हवा में
तैरने वाला जहाज
सधे हुवे नाविक की तरह
गोता लगाएगा
गहरे समुद्र में
और बदल जायेगा
पनडुब्बी में
सारे रहस्य को अन्दर समेटे

Thursday, March 18, 2010

नव संवत्सर

क्षमा प्रार्थी हूँ बिलम्ब के लिए...
कभी कभी नितांत निजी अनकहा रह जाता है
कुछ ऐसे ही कारण से
.
.....................

होली
की अग्नि में दहन,
मायूसी, अहम् विकार के बाद
पेड़ों पर नयी पत्तियों, कोपलों का आना
बसंत की बयार की मादकता
आम का बौराना
नित नए सपने, नयी उमंगों का झिलमिलाना
शुरुआत है नए संवत्सर की।

पुराने , बोझिल, नीरस- असत्य को त्याग
संपूर्ण नवीनता के साथ
जियो उल्लास से
बौराए आम के पेड़ों की तरह
उठो बसंत की मादक बयार संग
सृजित होंगे नवीन सपने, उन सपनो के सच।