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Saturday, May 15, 2010

ममता

मेरा छोटा बच्चा
मेरा बेटा
उत्साहित है
अपने बड़े होने के
अहसास को जी पाने के लिए

बार-
बार
जानना चाहता था
कब बाहर जाओगी माँ
मैं इस बार अकेले
बिलकुल अकेले
खुद को /घर को संभालूँगा

मैं हाँ-हाँ करती
ट्रेन में बैठ तो गयी हूं

पर
मन जा अटका है
उसी की ओर

कैसे रहेगा वह
क्या खायेगा

कहीं रात लाइट चली गयी तो?
घर
का इनवर्टर भी ख़राब है
वह डरता है

दिन में भी अंधेरे से।









5 comments:

  1. verry good Mamta ji
    !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! Manohar

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  2. बहुत गहन अभिव्यक्ति, आज आपकी कई रचनाए पढ़ी अच्छा लगा !

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  3. Ma ka man atka hi rahta hai bacchon ke liye...
    Achhe se prastut kiya hai aapne, bete ke bade hone ke ahsaas ko aur apni chinta ko.....
    Shubhkaamnaen!

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  4. ये माँ का मन है .... स्वालंबी बनाना भी चाहता है डर भी लगता है ...

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  5. nice blogs aunty... love it...magar main usakey sath tha....

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