वर्ष के सबसे कठिन दिन ही नहीं
बल्कि वर्षों के वर्ष
बिताये हैं कठिनाई में
कभी जीती/मरती
कभी हंसती/रोती
तब जो तसल्ली देता था
वह था अपनों का
अपना होने का भ्रम
आज वर्ष हैं/दिन हैं
दिनों की कठिनाइयाँ भी हैं
पर नहीं है पीड़ा
नहीं है घुटन
क्योंकि पता है
कोई धोखा दे सके
ऐसा सच नहीं
है अपने साथ।
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ReplyDelete"तब जो तसल्ली देता था
ReplyDeleteवह था अपनों का
अपना होने का भ्रम"
बिना कुछ कहे सब कुछ कह दिया - हमारे आज के आचरण और व्यवहार को आइना दिखाती छोटी मगर कारगर रचना
May 12, 2010 7:07 AM
स्वागत है आपका हिंदी ब्लॉग्गिंग में....
ReplyDeleteतमाम तरह की कठिनाइयां हैं ममता जी !
ReplyDeleteइन्हीं के साथ सामंजस्य बिठा कर चलने का नाम जीवन है
आपकी कविता मन को छू गई..........
आपका लेखन यशस्वी हो.........
स्वागत है
हार्दिक शुभ कामनाएं
-अलबेला खत्री
वह था अपनों का,
ReplyDeleteअपना होने का भ्रम....shandar
यह हम सभी के जीवन का सत्य है जिसे हम सभी जीते हैं ,शायद यही आप सब को छू गया ।
ReplyDeleteसराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
उम्मीद करती हूँ आगे भी आप सबकी प्रतिक्रिया मिलती रहेगी।
-ममता
स्वागत
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
काबिले तारीफ़
ReplyDeleteacchhi kavitaa hai....yaaki ki sach hi ho.....lagti to sach hai....hai naa....?
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