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Tuesday, May 11, 2010

अनुभूति

वर्ष के सबसे कठिन दिन ही नहीं
बल्कि वर्षों के वर्ष
बिताये हैं कठिनाई में
कभी जीती/मरती
कभी हंसती/रोती
तब जो तसल्ली देता था
वह था अपनों का
अपना होने का भ्रम

आज वर्ष हैं/दिन हैं
दिनों की कठिनाइयाँ भी हैं
पर नहीं है पीड़ा
नहीं है घुटन
क्योंकि पता है
कोई धोखा दे सके
ऐसा सच नहीं
है अपने साथ।

10 comments:

  1. "तब जो तसल्ली देता था
    वह था अपनों का
    अपना होने का भ्रम"
    बिना कुछ कहे सब कुछ कह दिया - हमारे आज के आचरण और व्यवहार को आइना दिखाती छोटी मगर कारगर रचना
    May 12, 2010 7:07 AM

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  2. स्वागत है आपका हिंदी ब्लॉग्गिंग में....

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  3. तमाम तरह की कठिनाइयां हैं ममता जी !

    इन्हीं के साथ सामंजस्य बिठा कर चलने का नाम जीवन है

    आपकी कविता मन को छू गई..........


    आपका लेखन यशस्वी हो.........

    स्वागत है

    हार्दिक शुभ कामनाएं

    -अलबेला खत्री

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  4. वह था अपनों का,
    अपना होने का भ्रम....shandar

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  5. यह हम सभी के जीवन का सत्य है जिसे हम सभी जीते हैं ,शायद यही आप सब को छू गया ।
    सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
    उम्मीद करती हूँ आगे भी आप सबकी प्रतिक्रिया मिलती रहेगी।
    -ममता

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  7. काबिले तारीफ़

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  8. acchhi kavitaa hai....yaaki ki sach hi ho.....lagti to sach hai....hai naa....?

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