पीड़ित हूँ
मैं माँ हूँ
उन बच्चों की
जिनको दिया
प्यार अपार
दुलार/सुरक्षित ये संसार
सुखी हैं वे
जैसे भी जिस हाल में
क्योंकि कैद नहीं हैं
वे पिंजरे के जाल में
सांस ले पाते हैं
खुली चिरैया की तरह
सुखी हूँ मैं
ये सुख पीड़ा बढ़ाता है
मुझे मुरझाई अपनी
वो नन्ही कली
जिसको मैं अपनी
प्यार/दुलार के छाँव में
न रख सकी
न सींच सकी
जो आज भी
मरू की तपिश को सहती
प्रयासरत है
अपनी कोमलता
को बचाए रखने के लिए
जिसको मुझसे माली का
मुखौटा पहन छीन लिया
सौदागरों ने।
ममता जी नमस्कार आपकी कबिता पड़ी जिसका शीर्षक है पीड़ा वह कबिता बहुत लगी |
ReplyDelete.............मनोहर लाल बेरी
मनोहर जी, बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteसच है की सुख पीड़ा भी बड़ा देता है .. नारी मन की सूक्ष्मभावनाओं को लिहा है आपने ...
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