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Tuesday, April 14, 2015

बेपरवाहियाँ

बहुत याद आते हैं आज कल 
गुदगुदाते हैं तुम्हारे साथ बिताये 
दुस्साहसी ,आसान और पागलपन भरे 
कमसीन उमर में किये गए 
भोलेपन की उम्मीदों 
शैतानियों से भरे 
बेपरवाही और खुशियों से भरे 
दिन छोटा पड़ जाने वाले दिन 
और याद आती हैं 
तुम्हारी सच्चाई ,पवित्रता 
भोलापन और मासूमियत 
और वो मुसकुराना शर्माना जिसके 
दीवाने थे सारे 
बूढ़े  और जवान 
और बच्चे भी
अभी भी वो समय 
ठहरा हुआ है 
उतना ही ताज़ा 
जितना जीते हुए 
रहा था वो  

Saturday, April 11, 2015

ईवा

मुझे तो ईवा के खर्राटे भी बहुत सुरीले
बहुत अपने से  हैं लगते
जिसको कुछ दे नहीं सकती
जिसके लिए कुछ भी
कुर्बान नहीं कर सकती
नहीं है कुछ भी उसकी कुछ भी
मांग मुझसे
नही दे पाती  हूँ कुछ भी ऐसा
जो दे संतोष मुझको
पर फिर भी वही है जो कराती है
अहसास  होने का अपने हर घडी
जब होती हूँ मैं
बीमार और अकेली.

Friday, April 10, 2015

जीवन यात्रा

जीवन के संध्या काल में
चलते चलते
दूर बहुत दूर
आ गई हूँ
इस यात्रा में
रास्ते का होश नहीं रहा
कब कांटे चुभे
कब पैर जले
और छिले
अब जब होश सा आने लगा है
और अब जब दिखने लगे हैं
जख्मों के निशान
साथ ही टीसने लगे हैं
घाव पुराने
जख्म पैरों पर ,दर्द क्यों
होता है कलेजे  में .

ये दर्द तब क्यों न चला पता
जब ये ताज़ा  था
हर दिन लगती थी ठोकर और जब
जलते थे पैर हर दिन.

दूसरी पारी .........

   सबसे पहले क्षमा प्रार्थी हूँ उन सब से, जिन्होंने पढ़ा और मेरा हौसला बढ़ाया ।मैंने एक नए संवत्सर पर अपना ब्लॉग शुरू किया था ये सोच कर  कि बहुत कुछ आप सब से, कह सुन सकूंगी ,पर .....मैं हारना ,भागना नहीं जानती ,और नहीं जानती हूँ मजबूरी जैसा कोई शब्द। पर हाँ ,हालत क्या कुछ नहीं कर देता और हम इस दुनिया के रंगमंच पर अदृश्य की डोर से बंधी हम कठपुतलियां वही करते हैं जैसा वो चाह लेता  है.तो बंधुओं बिना ऊपर अपनी कही तमाम बड़ाइयों के, मैं भी अनचाहे वैसे ही वही करती रही जो वो चाहता था ।
              ठीक चलती गाड़ी में हड्डियों  की असहनीय  और ठीक न  होने  वाली पीड़ा दायक बीमारी ने मुझे भौचक कर दिया.ऊर्जा से भरे मन मिजाज़ को अचानक मरती हुई देंह का सच स्वीकार करना कठिन था.पर मैं तो अपनी कोई बात कह न सकी थी तो मेरे जीवन का पटाक्षेप कैसे हो सकता था?कोई चिकित्सा  असर नहीं  कर  रही  थी  क्यूंकि इस  शानदार बीमारी का कोई इलाज नहीं है ऐसा डाक्टरों  ने बताया.ऐसे में एक अपरिचित चिकित्सा पद्धति ने जीवन दान दिया.अब आपके बीच में तब तक तो हूँ  ही जब तक मेरे शरीर  और मन  की  ऊर्जा साथ देगी.... .. .