बहुत याद आते हैं आज कल
गुदगुदाते हैं तुम्हारे साथ बिताये
दुस्साहसी ,आसान और पागलपन भरे
कमसीन उमर में किये गए
भोलेपन की उम्मीदों
शैतानियों से भरे
बेपरवाही और खुशियों से भरे
दिन छोटा पड़ जाने वाले दिन
और याद आती हैं
तुम्हारी सच्चाई ,पवित्रता
भोलापन और मासूमियत
और वो मुसकुराना शर्माना जिसके
दीवाने थे सारे
बूढ़े और जवान
और बच्चे भी
अभी भी वो समय
ठहरा हुआ है
उतना ही ताज़ा
जितना जीते हुए
रहा था वो
कुछ लान्हे रुक जाते हैं समय के साथ ...
ReplyDeleteबहुत गहरा एहसास ...
धन्यवाद दिगम्बर जी।
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