बेटी ने कहा
माँ ! भूकंप ने नेपाल को
तहस नहस कर दिया
इमारतें ढह गईं
धरोहर नष्ट हो गए
इनमें दब गईं हजारों जिन्दगी
घर उजड़ गए
परिवार के परिवार नहीं रहे
कितने अनाथ हुए
कितनों ने अपने खोये
कोई अपंग हुआ
तो कोई बर्बाद
धरती हमारे यहाँ भी हिली
क्या है ये ?
हम इंसानो का बिगाड़ा हुआ या
प्रकृति का कोप ?
क्यों हम पागल होते जा रहे हैं.
वनो को क्यों काट रहे हैं?
क्यों अविचल बहती धारा को
रोक देते हैं बांध बना कर
शिक्षा आँखें खोलती है
पर हम
आँखे मुन्दते जाते हैं
हम चढते हैं पहाड़ों पर
रौदते हैं और छोड कर आते है
अपनी फितरत के निशान
प्रकृति पुराने जमाने की बहू तो नही
जो सहेगी और कुछ न कहेगी
Saturday, May 23, 2015
वर्तमान
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