Pages

My Blog List

Tuesday, May 17, 2016

बाबू जी की पुण्य तिथि पर.....

                        16 मई
बहुत याद आते हैं
बाबू जी आजकल
याद आता है उनका
मुझे कंधे पर बैठाकर घुमाना
और याद आता है
मेरी उंगली पकड़ कर
मुहल्ले के पुस्तकालय मे ले जाना
बिमारी मे मेरी
साइकिल पर बैठाकर
खिलौने दिलाने ले जाना
और भी अनन्त यादें...
जेब थी जिनकी
कुबेर का खजाना
मेरी इच्छाएँ उनकी  खुशी
और होती है छटपटाहट
माँ के लिए
जिसके आँचल का कोना  पकड़े पकड़े
सुबह और रात  होती थी
भूल जाता है मन
नही लेट सकूँगी
अभी दौड़ कर
माँ की गोद मे
नही पूछेगी वो मुझसे
कैसी हूँ मै
नही रहने से  उनके
लगता है जीवन मे
नही रहे देने वाले रिश्ते
बचे हैं तो बस लेने वाले
नही है कोई इस चिन्ता मे जीने वाला
कि बेटी उनकी खुश नही
कि कैसे  जीएगी बेटी उनकी
अपना लम्बा जीवन
बिना सहारे के उनके
कि खाया क्या  बेटी ने
पहना क्या /उदास है क्यो
होते तो जानते
बिमारी शरीर  की नही
होती है मन की
होने  से उनके
मै होती सिर्फ प्यारी बेटी
उनकी संतान
जो मै आज नही हूँ
आज मेरी  पहचान है
हाड मांस का जिंदा इंसान ।