Pages

My Blog List

Saturday, May 23, 2015

प्यारी ईवा .....मेरी सोन परी

      
अब नहीं सुनाई देंगे कभी
ईवा के खर्राटे
हमारी  शांति चली गयी
उसके खर्राटों के साथ
अब जब घर में बच्चे न होंगे
तो होगा बस सन्नाटा /गहरा अकेलापन
समय के साथ साथ जरुरत थी
और भी ज्यादा जिसके साथ की
जिसका होना हमारे दुःख में भी सुख था
जिसके होने से बंधे थे  एक ही डोर से
वो धागा टूट सा गया 
जिसने बहुतों  को सिखाया
बिना प्रतिकार के सिर्फ देना
बिना कुछ पाये सिर्फ देना
प्यार की परिभाषा  थी  जो
जानती थी सिर्फ देना
अपने स्वार्थ से किया
उसको प्यार हमने
उसके प्यारेपन के कारण
पर उसने हर किसी को
दिया प्यार कोई कैसा भी था
हम इनसान जो नहो सीखा सकते
वो पाठ पढ़ा कर गई हमारी ईवा
घर में  हर घडी उसकी
छवि महसूस होती है
उसकी  बड़ी  बड़ी मासूम
प्यार भरी उत्सुक आँखे
हर घड़ी पीछा करती हैं
घर पर आने पर उसके
भाग के न आने पर
उसके न दिखने पर
दिल बैठ जाता है 
आँखों के  आंसू थमते नहीं
बेटी की आँखे सूजी रहती हैं
रो रो कर ,
बेटा पत्थर हो गया है
सदमे से ,
चार साल की नन्ही ईवा ने
मौका तक नहीं दिया 
अपने लिए कुछ करने का
वो तो बीमार भी न थी
बस  एक उलटी ......
डाक्टर के  नाम पर
दुकान  खोल कर बैठ  जाना
डिग्री कौन जाँचे
कौन जाँचे उनकी योग्यता
जब तुरंत इलाज की जरुरत हो
इतना इन बेरहमों के लिए काफी है
किसी की जान लेने के लिए
क्रोध और विषाद दिन
रात का चैन ले जा चुका है
ईवा बस  गयी है हमारे अंदर
लहू में आक्सीजन की तरह
व्यव्हार में संस्कारों की तरह ।

वर्तमान

बेटी ने कहा
माँ  ! भूकंप ने नेपाल को
तहस नहस कर  दिया
इमारतें  ढह गईं
धरोहर नष्ट  हो गए
इनमें दब गईं हजारों  जिन्दगी
घर उजड़ गए
परिवार के परिवार नहीं रहे
कितने अनाथ हुए
कितनों ने अपने खोये
कोई अपंग हुआ
तो  कोई बर्बाद
धरती हमारे यहाँ भी हिली
क्या है ये ?
हम इंसानो का बिगाड़ा हुआ या
प्रकृति का कोप ?
क्यों हम पागल होते जा रहे हैं.
वनो को क्यों काट रहे हैं?
क्यों अविचल बहती धारा  को
रोक देते हैं  बांध बना कर
शिक्षा आँखें खोलती है
पर हम
आँखे मुन्दते जाते हैं
हम चढते  हैं पहाड़ों  पर
रौदते हैं और छोड  कर आते है
अपनी फितरत के निशान
प्रकृति  पुराने जमाने की  बहू तो नही
जो  सहेगी और कुछ न कहेगी