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Tuesday, May 16, 2017

बाबू जी

16 मई  .......
बाबू जी
याद तो हमेशा आते हैं
खास कर तब
और ज्यादा
जब
लगती है चोट मन को ।
बाबू जी ...
दुनिया के सबसे बहादुर
सबसे ज्यादा विद्वान
सबसे ज्यादा प्यार करने वाले ।
शाम होने के साथ
आज के दिन होने लगती है
घबराहट, उलझन
मन गहरी उदासी से भर जाता है
याद आता है कैसे
चले जाते हैं  प्यार करने वाले अपने
देखते ही देखते ।
मेरे शक्तिशाली बाबूजी को
पराजित कर दिया
मृत्यु ने।
बहुत कुछ टूट गया
अन्दर से
मन होता है आज भी
जोर से आवाज देने का
बाबूजी को
शायद पूछ दें किसी दिशा से
बबलू बेटा क्या चाहिए ।
पर ऐसा होगा नही
इस टीस के साथ गुजरते जाते हैं
सालों के साल।

Tuesday, May 17, 2016

बाबू जी की पुण्य तिथि पर.....

                        16 मई
बहुत याद आते हैं
बाबू जी आजकल
याद आता है उनका
मुझे कंधे पर बैठाकर घुमाना
और याद आता है
मेरी उंगली पकड़ कर
मुहल्ले के पुस्तकालय मे ले जाना
बिमारी मे मेरी
साइकिल पर बैठाकर
खिलौने दिलाने ले जाना
और भी अनन्त यादें...
जेब थी जिनकी
कुबेर का खजाना
मेरी इच्छाएँ उनकी  खुशी
और होती है छटपटाहट
माँ के लिए
जिसके आँचल का कोना  पकड़े पकड़े
सुबह और रात  होती थी
भूल जाता है मन
नही लेट सकूँगी
अभी दौड़ कर
माँ की गोद मे
नही पूछेगी वो मुझसे
कैसी हूँ मै
नही रहने से  उनके
लगता है जीवन मे
नही रहे देने वाले रिश्ते
बचे हैं तो बस लेने वाले
नही है कोई इस चिन्ता मे जीने वाला
कि बेटी उनकी खुश नही
कि कैसे  जीएगी बेटी उनकी
अपना लम्बा जीवन
बिना सहारे के उनके
कि खाया क्या  बेटी ने
पहना क्या /उदास है क्यो
होते तो जानते
बिमारी शरीर  की नही
होती है मन की
होने  से उनके
मै होती सिर्फ प्यारी बेटी
उनकी संतान
जो मै आज नही हूँ
आज मेरी  पहचान है
हाड मांस का जिंदा इंसान ।

Thursday, December 10, 2015

सपना

               सपना
मैंने  सपने देखे
सपनों  मे  अट्टालिकाएँ नहीं
झोपड़ी थी
पक्की  सडक नहीं
कच्ची  मिट्टी  थी
नल नहीं नदी थी
चमकीले कपड़े  नहीं थे
थी  तो सूती धोती
कार नहीं साइकिल थी
गैस की जगह था 
लकड़ी का  चूल्हा
बिजली की जगह दीपक था
और था प्रकृति का उजाला /अंधेरा ,
सपना बड़ा छोटा नहीं
दुर्लभ होता है
सो
बंद कर दिया मैंने
सपने देखना
अब सपनों मे नहीं
पक्के  मकान ,एसी की हवा
आर ओ के पानी के  साथ
एल इ डी की रोशनी में
कार जहाज जैसे मशीनों  के  साथ
जिन्दा हूँ मैं
मशीन होकर ।

Wednesday, October 28, 2015

रात्रि

                      रात्रि 

                मेरी  रात्रि
                शुभ
                 याद नहीं कब रही
                 शुभ में भी निश्चिंतता नहीं
                  इस जीवन की पारी तो
                  पूरी हुई
                  इंतजार करूगीं मैं
                   पूर्ण शुभरात्रि का
                    पुनः आगमन पर ।

                   रात्रि  भयावह  स्वप्न है
                   स्वप्न  डराने वाले
                    स्वप्न  व्यग्र करने वाले
                     स्वप्न नींद उड़ाने वाले
                     क्यों आती है ये रात्रि
                     जब देंह आत्मा किसी को भी
                      आराम नहीं ।

                      नश्तर चुभ गया  हृदय में
                      याद आ गया अंगुलिमाल
                       पाप और पुण्य
                        करने वाले का होता है
                        वैसे ही जैसे
                        मान -सम्मान
                         जो पाता है उसका
                         प्रारब्ध होता है
                         न की  उनका
                         जिनके  लिए पाता है ।

दुःख

                    दुःख

       किसकी खातिर
       जो  अपना  नही था
       या
       उसकी  खातिर
       जो अपना होकर भी
        अपना नही था
        पर नहीं
        जो अपना था
        धमनियों में एक ही 
        लहू के
        पानी होने का दुख ।

         खून को
         बनते देखा  है पानी 

        अपने  ही  जीवन  में 
         मैंने 
         इसके लिए
         शारीरिक बिमारी की नहीं
         बल्कि
         जरूरत होती है
         उस मानसिक अवस्था की
          जब इंसान
          लालच में अंधा हो जाए
          तैयार हो जाए
           अपने  स्वार्थ के लिए
           अपने ही  खून की
           सौदेबाजी के लिए ।

Saturday, May 23, 2015

प्यारी ईवा .....मेरी सोन परी

      
अब नहीं सुनाई देंगे कभी
ईवा के खर्राटे
हमारी  शांति चली गयी
उसके खर्राटों के साथ
अब जब घर में बच्चे न होंगे
तो होगा बस सन्नाटा /गहरा अकेलापन
समय के साथ साथ जरुरत थी
और भी ज्यादा जिसके साथ की
जिसका होना हमारे दुःख में भी सुख था
जिसके होने से बंधे थे  एक ही डोर से
वो धागा टूट सा गया 
जिसने बहुतों  को सिखाया
बिना प्रतिकार के सिर्फ देना
बिना कुछ पाये सिर्फ देना
प्यार की परिभाषा  थी  जो
जानती थी सिर्फ देना
अपने स्वार्थ से किया
उसको प्यार हमने
उसके प्यारेपन के कारण
पर उसने हर किसी को
दिया प्यार कोई कैसा भी था
हम इनसान जो नहो सीखा सकते
वो पाठ पढ़ा कर गई हमारी ईवा
घर में  हर घडी उसकी
छवि महसूस होती है
उसकी  बड़ी  बड़ी मासूम
प्यार भरी उत्सुक आँखे
हर घड़ी पीछा करती हैं
घर पर आने पर उसके
भाग के न आने पर
उसके न दिखने पर
दिल बैठ जाता है 
आँखों के  आंसू थमते नहीं
बेटी की आँखे सूजी रहती हैं
रो रो कर ,
बेटा पत्थर हो गया है
सदमे से ,
चार साल की नन्ही ईवा ने
मौका तक नहीं दिया 
अपने लिए कुछ करने का
वो तो बीमार भी न थी
बस  एक उलटी ......
डाक्टर के  नाम पर
दुकान  खोल कर बैठ  जाना
डिग्री कौन जाँचे
कौन जाँचे उनकी योग्यता
जब तुरंत इलाज की जरुरत हो
इतना इन बेरहमों के लिए काफी है
किसी की जान लेने के लिए
क्रोध और विषाद दिन
रात का चैन ले जा चुका है
ईवा बस  गयी है हमारे अंदर
लहू में आक्सीजन की तरह
व्यव्हार में संस्कारों की तरह ।

वर्तमान

बेटी ने कहा
माँ  ! भूकंप ने नेपाल को
तहस नहस कर  दिया
इमारतें  ढह गईं
धरोहर नष्ट  हो गए
इनमें दब गईं हजारों  जिन्दगी
घर उजड़ गए
परिवार के परिवार नहीं रहे
कितने अनाथ हुए
कितनों ने अपने खोये
कोई अपंग हुआ
तो  कोई बर्बाद
धरती हमारे यहाँ भी हिली
क्या है ये ?
हम इंसानो का बिगाड़ा हुआ या
प्रकृति का कोप ?
क्यों हम पागल होते जा रहे हैं.
वनो को क्यों काट रहे हैं?
क्यों अविचल बहती धारा  को
रोक देते हैं  बांध बना कर
शिक्षा आँखें खोलती है
पर हम
आँखे मुन्दते जाते हैं
हम चढते  हैं पहाड़ों  पर
रौदते हैं और छोड  कर आते है
अपनी फितरत के निशान
प्रकृति  पुराने जमाने की  बहू तो नही
जो  सहेगी और कुछ न कहेगी