दुःख
किसकी खातिर
जो अपना नही था
या
उसकी खातिर
जो अपना होकर भी
अपना नही था
पर नहीं
जो अपना था
धमनियों में एक ही
लहू के
पानी होने का दुख ।
खून को
बनते देखा है पानी
अपने ही जीवन में
मैंने
इसके लिए
शारीरिक बिमारी की नहीं
बल्कि
जरूरत होती है
उस मानसिक अवस्था की
जब इंसान
लालच में अंधा हो जाए
तैयार हो जाए
अपने स्वार्थ के लिए
अपने ही खून की
सौदेबाजी के लिए ।
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