रात्रि
मेरी रात्रि
शुभ
याद नहीं कब रही
शुभ में भी निश्चिंतता नहीं
इस जीवन की पारी तो
पूरी हुई
इंतजार करूगीं मैं
पूर्ण शुभरात्रि का
पुनः आगमन पर ।
रात्रि भयावह स्वप्न है
स्वप्न डराने वाले
स्वप्न व्यग्र करने वाले
स्वप्न नींद उड़ाने वाले
क्यों आती है ये रात्रि
जब देंह आत्मा किसी को भी
आराम नहीं ।
नश्तर चुभ गया हृदय में
याद आ गया अंगुलिमाल
पाप और पुण्य
करने वाले का होता है
वैसे ही जैसे
मान -सम्मान
जो पाता है उसका
प्रारब्ध होता है
न की उनका
जिनके लिए पाता है ।
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