मुझे तो ईवा के खर्राटे भी बहुत सुरीले
बहुत अपने से हैं लगते
जिसको कुछ दे नहीं सकती
जिसके लिए कुछ भी
कुर्बान नहीं कर सकती
नहीं है कुछ भी उसकी कुछ भी
मांग मुझसे
नही दे पाती हूँ कुछ भी ऐसा
जो दे संतोष मुझको
पर फिर भी वही है जो कराती है
अहसास होने का अपने हर घडी
जब होती हूँ मैं
बीमार और अकेली.
संवेदनाओं में पगी रचना ...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ।
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