सबसे पहले क्षमा प्रार्थी हूँ उन सब से, जिन्होंने पढ़ा और मेरा हौसला बढ़ाया ।मैंने एक नए संवत्सर पर अपना ब्लॉग शुरू किया था ये सोच कर कि बहुत कुछ आप सब से, कह सुन सकूंगी ,पर .....मैं हारना ,भागना नहीं जानती ,और नहीं जानती हूँ मजबूरी जैसा कोई शब्द। पर हाँ ,हालत क्या कुछ नहीं कर देता और हम इस दुनिया के रंगमंच पर अदृश्य की डोर से बंधी हम कठपुतलियां वही करते हैं जैसा वो चाह लेता है.तो बंधुओं बिना ऊपर अपनी कही तमाम बड़ाइयों के, मैं भी अनचाहे वैसे ही वही करती रही जो वो चाहता था ।
ठीक चलती गाड़ी में हड्डियों की असहनीय और ठीक न होने वाली पीड़ा दायक बीमारी ने मुझे भौचक कर दिया.ऊर्जा से भरे मन मिजाज़ को अचानक मरती हुई देंह का सच स्वीकार करना कठिन था.पर मैं तो अपनी कोई बात कह न सकी थी तो मेरे जीवन का पटाक्षेप कैसे हो सकता था?कोई चिकित्सा असर नहीं कर रही थी क्यूंकि इस शानदार बीमारी का कोई इलाज नहीं है ऐसा डाक्टरों ने बताया.ऐसे में एक अपरिचित चिकित्सा पद्धति ने जीवन दान दिया.अब आपके बीच में तब तक तो हूँ ही जब तक मेरे शरीर और मन की ऊर्जा साथ देगी.... .. .
Friday, April 10, 2015
दूसरी पारी .........
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