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Friday, March 19, 2010

महसूस कर रही हूँ

महसूस कर रही हूँ
हवा में तैरते हुए
जहाज में खुद को
लगता है
यह हवा में
तैरने वाला जहाज
सधे हुवे नाविक की तरह
गोता लगाएगा
गहरे समुद्र में
और बदल जायेगा
पनडुब्बी में
सारे रहस्य को अन्दर समेटे

2 comments:

  1. डॉ. साहब.. रहस्य कभी रहस्य नहीं रहते.. कभी न कभी तो पर्दा उठ ही जाता है.. बहुत ही बढ़िया कविता है आपकी.. ब्लॉग के तेवर और कलेवर से मेल खाती हुई...

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  2. धन्यवाद् खान साहब, जो आपने मेरी कविता को सराहा।

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