क्षमा प्रार्थी हूँ बिलम्ब के लिए...
कभी कभी नितांत निजी अनकहा रह जाता है
कुछ ऐसे ही कारण से
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होली की अग्नि में दहन,
मायूसी, अहम् विकार के बाद
पेड़ों पर नयी पत्तियों, कोपलों का आना
बसंत की बयार की मादकता
आम का बौराना
नित नए सपने, नयी उमंगों का झिलमिलाना
शुरुआत है नए संवत्सर की।
पुराने , बोझिल, नीरस- असत्य को त्याग
संपूर्ण नवीनता के साथ
जियो उल्लास से
बौराए आम के पेड़ों की तरह
उठो बसंत की मादक बयार संग
सृजित होंगे नवीन सपने, उन सपनो के सच।
Babli,
ReplyDeleteTumhari sari kavitayen padhi, mehsus bhi kee, bahut acha likhti ho tum...
Anjani