नया जो पुराना होकर नव-सृजित हुआ....बीता है पर रीता नहीं!
डॉ. साहब.. रहस्य कभी रहस्य नहीं रहते.. कभी न कभी तो पर्दा उठ ही जाता है.. बहुत ही बढ़िया कविता है आपकी.. ब्लॉग के तेवर और कलेवर से मेल खाती हुई...
धन्यवाद् खान साहब, जो आपने मेरी कविता को सराहा।
डॉ. साहब.. रहस्य कभी रहस्य नहीं रहते.. कभी न कभी तो पर्दा उठ ही जाता है.. बहुत ही बढ़िया कविता है आपकी.. ब्लॉग के तेवर और कलेवर से मेल खाती हुई...
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